भगवान श्रीकृष्ण के जीवन का एक मूल मंत्र: “धर्म युक्त कर्म ही पूजा है।"
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भगवान श्री कृष्ण के जीवन का मूल मंत्र
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भगवान श्रीकृष्ण का जीवन केवल भक्ति और प्रेम का प्रतीक नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला का अद्भुत मार्गदर्शक भी है। उन्होंने गीता के माध्यम से हमें ऐसा मंत्र दिया है जो हर युग में प्रासंगिक है। "कर्मण्येवाधिकारस्ते मां फलेषु कदाचन" यानी ,मनुष्य का अधिकार केवल उसके कर्म पर है, फल पर नहीं।
भगवान श्री कृष्ण ने कर्मों को सर्वोपरि माना: -
कृष्ण जी ने हमेशा यही सिखाया कि जीवन में केवल कर्म करते रहो, फल की चिंता मत करो। जब हम कर्म पर ध्यान देते हैं। तो परिणाम अपने आप बेहतर होता है। यह सोच हमें चिंता, असफलता और निराशा से बचाती है।
जीवन में सफलता का रहस्य:-
आज की तेज़ रफ़्तार भरी जिंदगी में लोग तुरंत परिणाम चाहते हैं। लेकिन श्रीकृष्ण का यह मंत्र हमें धैर्य और समर्पण सिखाता है। सही दिशा में किया गया कर्म, हमे देर-सबेर सफलता ज़रूर दिलाता है।
कर्म और भक्ति का संगम ही कर्म करने का सही तरीका :-
भगवान श्री कृष्ण जी ने यह भी बताया कि सांसारिक कर्म केवल सांसारिक कार्य ही नहीं है, बल्कि यह ईश्वर की भक्ति का एक रूप है। लेकिन जब हम निस्वार्थ भाव से कर्म करते हैं। तो वही कर्म पूजा बन जाता है।
जीवन में हर मनुष्य के लिए अपनाने योग्य सीख:-
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जीवन में हर मनुष्य के लिए अपनाने योग्य सीख।
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1. हर काम पूरे समर्पण और ईमानदारी से करो।
2. परिणाम की चिंता छोड़कर इस जीवन यात्रा का आनंद लो।
3. असफलता को सीख मानकर आगे बढ़ो।
4. अपने कर्मों को ही सच्ची भक्ति समझो।
5. अपने कर्मों में जन सेवा भाव लाएं।
निष्कर्ष:-
भगवान श्रीकृष्ण का यह जीवन मंत्र। “कर्म ही पूजा है” भगवान श्री कृष्ण हमें याद दिलाते है। कि इंसान के हाथ में केवल उसका प्रयास है। अगर हम सच्चे मन से कर्म करेंगे, तो जीवन में संतोष और सफलता दोनों अपने आप आएंगे।
राधे कृष्णा।
By: --deobrat bhaskar sharma
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