भारत में सावन का महीना विशेष पावन तथा धार्मिक माना जाता है। यह सावन का महीना भगवान शिव के भक्ति के लिए समर्पित है। इस महीने में भगवान महादेव का जला अभिषेक के लिए भक्त कावड़ यात्रा पर निकलते हैं। यह काफी पौराणिक परंपरा है। यह यात्रा केवल धार्मिक ही नहीं बल्कि जीवन,में अनुशासन तथा तपस्या और संयम का प्रतीक है। आईए जानते हैं कांवड़ यात्रा का इतिहास:- सावन महीने में कांवड़ यात्रा का आरंभिक वर्णन शिवापुराण में मिलती है। शिव पुराण कथा के अनुसार जब देवता और दोनों समुद्र मंथन कर रहे थे। तब इसी मंथन के दौरान हलाहल विष निकल। विष के निकलने से पुरी ब्रह्मांड में उथल-पुथल मच गई तभी ब्रह्मांड की रक्षा के लिए भगवान शिव ने हल विष को पी लिया।
![]() |
| हलाहल विष पीते हए भगवान शिव |
हलाहल विष पीते ही भगवान शिव का कंठ नीला पड़ गया। जिसके चलते भक्तगण भगवान शिव को नीलकंठ नाम से भी पुकारते हैं। जब भगवान शंकर ने विष को पिया , तो तो उनका शरीर ताप बहुत ज्यादा बढ़ गया। भगवान शंकर के शरीर के ताप को शांत करने के लिए देवता तथा ऋषियों ने गंगाजल अर्पित करना शुरू कर दिया। तब से सावन का महीना में मनुष्य भी पवित्र नदियों का जल से भगवान महादेव को अभिषेक करने का परंपरा बन गया। यही परंपरा आज कावड़ यात्रा के रूप में शिवलिंग पर जल चढ़कर भगवान शिव की पूजा करता है। कौन थे पहले कांवड़ यात्री:- पौराणिक मान्यता के अनुसार त्रेता युग में भगवान राम ने पहले कावड़ यात्रा की थी। वे गंगाजल लेकर के और पूरी तरह से कांवड़ यात्रा करके शिवलिंग पर जल चढ़ाई थे। इसलिए भगवान राम को प्रथम कांवरिया कहा जाता है।
![]() |
| भगवान राम पहले कांवड़ यात्री थे |


0 टिप्पणियाँ